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शनिवार, 24 अक्टूबर 2020

कहानी :- कलयुगी राजा के साम्राज्‍य का अन्‍त

 कहानी 

राजाजी के साम्राज्‍य का अंन्‍त 

''अंधेर नगरी चौपट राजा''

एक गांव था उस गांव में एक गांव में एक राजा रहता था  गांव की कुल आबादी 8-10 हजार लोगों की थी । जि‍समें से ज्‍यादातर लोग ढाणि‍यों में नि‍वास करते थे  तथा गांव राजाजी की बि‍ना अनुमति‍ के नि‍वास करना  हर कि‍सी के  बस की बात नहीं थी। गांव में राजाजी का पूरा दबदबा एवं खोफ भी था। गांव में पंच, सरपंच,नेता यहां तक को भी अफसर भी राजाजी की बि‍ना मर्जी के कुस भी नहीं कर सकते थे। उस ईलाके में कोई नया अधि‍कारी यां नेता आता तो उसे एक बार राजाजी के दरबार में हाजरी लगानी ही पड्ती थी। चुनावों के समय तो उस गांव में राजाजी जि‍से चाहते उसे ही वाेेेट पड्तेे  थे और पंच- सरपंच तो राजाजी के नुमायदे जो हर काम में राजाजी का हिस्‍सा दरबार में पंहुचा सके व हर बार राजाजी से जी हूजूरी करता रहे ऐसे आदमी ही वोट मि‍लते थे। यानी उस गांव में यह तय था कि‍ राजाजी की खि‍लाफत करना तो दूर खि‍लाफत करनें वाले से लोग बात करनें से कतराते थे। लेकि‍न राजाजी को अपनें अलावा गांव वालों की कोई फि‍क्र नहीं थी बस राजाजी का एक नि‍यम था गांव वि‍कास यानी अपनें पेरों पर कुलाडी मारनें जैसा यानीं अगर गांव कि‍सी प्रकार का वि‍कास हुआ तो गांव वाले सक्षम हो जायेंगे और पढ लि‍ख गये व सक्षम हो गये तो राजाजी की जी हूजूरी बंद हो जायगी। 
इसलि‍ये राजाजी नें अपना दबदबा कायम रखनें के लि‍ये कि‍सी प्रकार का वि‍कास नहीं इस बात का पूरा ख्‍याल रखा । उस गांव में तो सरकारी योजना तो दूर की बात कोई भामाशाह को भी वि‍कास करनें की अनुमति‍ नहीं थी। कुछ लोग राजाजी के वि‍रोधी भी थे वो गांव की दशा व दि‍शा बदलनां चाहते थे लेकि‍न राजाजी की मर्जी के बि‍ना गांव वालों को भी यह मंजूर नहीं था और उनका साथ देनें की हि‍म्‍मत कि‍सी में नहीं थी । लेकिन समय के साथ लोग भी समजदार होते गये व एक दि‍न उसी गांव का एक व्‍यक्‍ति‍  देशावर से वापस अपनें गांव आया तथा गांव में ही व्‍यवसाय करनें का वि‍चार कि‍या तथा अपनें गांव में व्‍यवसाय स्‍थापि‍त कर दि‍या लेकि‍न राजाजी को इस बात का अंदेशा नहीं था कि‍ यह व्‍यक्ति‍ व्‍यवसाय लगानें के साथ साथ मेरी जडृे भी काट देगा । उस व्‍यक्‍ति‍ नें व्‍यवसाय के साथ- साथ अपनें गांव मेंं अपनी पहचान बढाता गया उसके अलावा समाजसेवा का कार्य हो, प्रति‍भाओं को मंच उपलब्‍ध करवाना हो, सांस्‍क्रति‍क कार्यक्रम करवाना हो हर काम मेंं सबसे आगे खडा रहता था, धीरे-धीरे वह व्‍यक्‍ति‍ गांव के हर इंसान के दि‍लों पर राज करनें लगा, बच्‍चे-बच्‍चे की जुबान पर उसी का नाम था। आगें पंच सरपंच के चुनाव आये राजाजी की नींद उडी हुई थी,  सरपंच की कुर्सी हाथ से जाती दि‍ख रही थी, राजाजी की तरफ से कोई प्रत्‍याशी उस व्‍यवसायी के सामनें खडा होनें को तैयार नहीं था, राजाजी को हार भी मंजूर नहीं थी तो अपनें प्रत्‍याशी के तौर पर एक व्‍यवसायी को ढूंढकर लाये और अपना प्रत्‍याशी घोषि‍त कर दि‍या लेकि‍न गांव वालों को यह मंजूर नहीं था, राजाजी नें खूब प्रचार कि‍या, पैसे बांटे, लोगों को डरा धमकार वोट बटोरनें की कोशीश की लेकि‍न हर कोशीश वि‍फल रही सामनें वाला प्रत्‍याशी जीत गया, राजाजी के राज का अंत सामनें था लेकि‍न गांव वालों के सामनें उनकी एक नहीं चली। आखि‍र में गांव वालाेें नें  भी कई वर्षों बाद राजाजी की हार अपनी आजादी पर खुलकर खुशीयां मनाई। पहली बार कि‍सी नें राजाजी को हराकर गांव में वि‍कास की नींव स्‍थापि‍त की तथा गांव को एक नई दि‍शा और प्रगति‍ की और ले जानेंं का संकल्‍प लि‍या।

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